एक बार की बात है, एक धनी व्यापारी अपनी माँ के साथ अपने गाँव के एक मंदिर में दान करने गया। उसने बहुत पैसा दान किया था और थक गया था, इसलिए उसने अंतिम दान के रूप में दस रुपये का नोट दिया।
उस समय मंदिर में एक संत थे जो ध्यान कर रहे थे। व्यापारी ने दस रुपये का नोट संत को दिया और उनसे पूछा, “आप इस नोट का क्या करेंगे?”
संत ने उत्तर दिया, “मैं इसे तब तक नहीं खोलूंगा जब तक मैं इसके बारे में पूरी तरह से नहीं सोचूंगा और इसे सर्वोत्तम तरीके से खर्च नहीं करूंगा।”
व्यापारी ने झुककर संत से दूसरा प्रश्न पूछने से पहले कुछ देर सोचा, “यदि मैं आपको दुगनी राशि दूं, तो क्या आप इसे तुरंत खर्च कर देंगे?”
संत मुस्कुराए और बोले, “नहीं, मैं अभी भी इसके बारे में पहले सोचूंगा।”
व्यापारी ने संत को और पैसे लेने के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन संत ने मना कर दिया।
थोड़ी देर बाद संत ने नोट खोला तो पाया कि वह गीला और चिपचिपा हो गया था। वह दुखी था और उसने व्यापारियों के इरादों के बारे में सोचा। संत को आभास हुआ कि व्यापारी ने सोचा था कि संत धन को बरबाद कर देंगे या नासमझी में खर्च कर देंगे।
हालाँकि, संत को अपने निर्णय पर विश्वास था और भगवान उन्हें सर्वोत्तम संभव तरीके से धन खर्च करने के लिए मार्गदर्शन करेंगे। नोट गीला हो गया था क्योंकि संत ने उसे एक मुरझाए हुए फूल के पास रख दिया था और उस पर पानी की बूंदें थीं।
इस कहानी का नैतिक यह है कि विश्वास एक शक्तिशाली शक्ति है जो हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकता है। जब हमें खुद पर भरोसा होता है और अपने फैसलों पर भरोसा होता है, तो हम अपने रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं। हमें अपनी क्षमताओं पर भरोसा रखना चाहिए और ईश्वर द्वारा दिए गए मार्गदर्शन पर भरोसा रखना चाहिए।
Leave a Reply