अमरनाथ की गुफा श्रीनगर से करीब 145 किलोमीटर की दूरी हिमालय पर्वत श्रेणियों में स्थित है। समुद्र तल से 3,978 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह गुफा 150 फीट ऊंची और करीब 90 फीट लंबी है। अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिए 2 रास्ते हैं- एक पहलगाम होकर जाता है और दूसरा सोनमर्ग बालटाल से जाता है। यानी देशभर के किसी भी क्षेत्र से पहले पहलगाम या बालटाल पहुंचना होता है। इसके बाद की यात्रा पैदल की जाती है। आओ जानते हैं अमरनाथ के रहस्य।
अमरनाथ गुफा के शिवलिंग को ‘अमरेश्वर’ कहा जाता है। इसे बाबा बर्फानी कहना गलत है। यहां की यात्रा जुलाई माह में प्रारंभ होती है और यदि मौसम अच्छा हो तो अगस्त के पहले सप्ताह तक चलती है। हिन्दू माह अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा से प्रारंभ होती है यात्रा और पूरे सावन महीने तक चलती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव इस गुफा में पहले पहल श्रावण मास की पूर्णिमा को आए थे इसलिए उस दिन को अमरनाथ की यात्रा को विशेष महत्व मिला। रक्षा बंधन की पूर्णिमा के दिन ही छड़ी मुबारक भी गुफा में बने हिमशिवलिंग के पास स्थापित कर दी जाती है।
कैसे बनता है शिवलिंग?
गुफा की परिधि लगभग 150 फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर सेंटर में एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूंदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि अन्य जगह टपकने वाली बूंदों से कच्ची बर्फ बनती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाती है। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग-अलग हिमखंड बन जाते हैं।
गुफा के सेंटर में पहले बर्फ का एक बुलबुला बनता है। जो थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है। चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू कर देता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है। चंद्र की कलाओं के साथ हिमलिंग बढ़ता है और उसी के साथ घटकर लुप्त हो जाता है। चंद्र का संबंध शिव से माना गया है। ऐसे क्या है कि चंद्र का असर इस हिमलिंग पर ही गिरता है अन्य गुफाएं भी हैं जहां बूंद बूंद पानी गिरता है लेकिन वे सभी हिमलिंग का रूप क्यों नहीं ले पाते हैं? अमरनाथ गुफा की तरह कई गुफाएं हैं। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं और वहां पर छत से बूंद-बूंद पानी टपकता है लेकिन वहां कोई शिवलिंग नहीं बनता।
क्या है इस गुफा का पौराणिक इतिहास?
कश्मीर घाटी में राजा दश और ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का निवास स्थान था। पौराणिक मान्यता है कि एक बार कश्मीर की घाटी जलमग्न हो गई। उसने एक बड़ी झील का रूप ले लिया। तब ऋषि कश्यप ने इस जल को अनेक नदियों और छोटे-छोटे जलस्रोतों के द्वारा बहा दिया। उसी समय भृगु ऋषि पवित्र हिमालय पर्वत की यात्रा के दौरान वहां से गुजरे। तब जल स्तर कम होने पर हिमालय की पर्वत श्रृखंलाओं में सबसे पहले भृगु ऋषि ने अमरनाथ की पवित्र गुफा और बर्फ के शिवलिंग को देखा। मान्यता है कि तब से ही यह स्थान शिव आराधना और यात्रा का प्रमुख देवस्थान बन गया, क्योंकि यहां भगवान शिव ने तपस्या की थी।
यात्रियों के अलावा 2900 टट्टू, पिट्ठू और पालकी वालों ने भी रजिस्ट्रेशन करवाया है। जो तीर्थयात्रियों को बेस कैम्प से गुफा तक ले जाएंगे। अब तक 125 टट्टू वाले, 1,046 पिट्ठू वाले और 1,733 पालकी वाले रजिस्टर्ड किए जा चुके हैं।
यात्रा के लिए दो रास्ते
पहलगाम से अमरनाथ गुफा जाने का रास्ता
पहलगाम से अमरनाथ गुफा लगभग 36 किलोमीटर दूर है।
इस रास्ते से गुफा पहुंचने में लगभग 2-3 दिन की चढ़ाई करनी पड़ती है।
पहलगाम से अमरनाथ पहुंचने का पहाड़ी रास्ता बालटाल से निकलने वाले रास्ते की तुलना में अधिक आसान और सपाट है।
अधिकतर बुजुर्ग इसी मार्ग काे चुनते हैं।
बालटाल से अमरनाथ गुफा जाने का रास्ता
बालटाल से अमरनाथ गुफा लगभग 14 किलोमीटर दूर है।
इस रास्ते से अमरनाथ गुफा जाने वाले रास्ते पर एक दिन की ट्रैकिंग के बाद दर्शन करके लौटा जा सकता है।
बालटाल से अमरनाथ गुफा का रास्ता कठिन और खड़ी चढ़ाई वाला है।
इसके बावजूद अगर आप जल्दी से दर्शन करके लौटना चाहते हैं तो ये रास्ता बेस्ट है।
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