तुलसीदास जयंती एक वार्षिक हिंदू त्योहार है जो प्रसिद्ध भारतीय कवि-संत तुलसीदास की जयंती मनाता है। तुलसीदास को उनके महाकाव्य “रामचरितमानस” के लिए जाना जाता है, जो अवधी कविता के रूप में हिंदू महाकाव्य रामायण का पुनर्कथन है। रामचरितमानस भगवान राम के जीवन और शिक्षाओं पर केंद्रित है।
तुलसीदास जयंती श्रावण माह के शुक्ल पक्ष के 7वें दिन मनाई जाती है, जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार जुलाई या अगस्त में आती है। सटीक तारीख हिंदू कैलेंडर के आधार पर साल-दर-साल बदलती रहती है।
तुलसीदास के भक्त और अनुयायी उनकी रचनाओं, विशेषकर रामचरितमानस के अंशों का पाठ करके इस दिन को मनाते हैं। हिंदू साहित्य और आध्यात्मिकता में तुलसीदास के योगदान को उजागर करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम, सत्संग (आध्यात्मिक सभा) और चर्चाएँ आयोजित की जाती हैं। कई लोग तुलसीदास को समर्पित मंदिरों में भी जाते हैं और प्रार्थनाओं और भक्ति गतिविधियों में भाग लेते हैं।
तुलसीदास के लेखन को हिंदू धर्म में अत्यधिक सम्मान दिया जाता है, और उनकी भक्ति कविता का भक्ति आंदोलन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, जो परमात्मा के प्रति गहरी, प्रेमपूर्ण भक्ति पर जोर देता है। उनके कार्य लोगों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा और हिंदू धर्मग्रंथों की समझ के लिए प्रेरित करते रहते हैं।
तुलसीदास जी की जीवनी
तुलसीदास, जिन्हें गोस्वामी तुलसीदास के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख मध्यकालीन भारतीय कवि, संत और दार्शनिक थे। उन्हें उनकी महान कृति “रामचरितमानस” के लिए जाना जाता है, जो प्राचीन भारतीय महाकाव्य रामायण का अवधी काव्य के रूप में पुनर्कथन है। तुलसीदास के जीवन और कार्यों का हिंदू आध्यात्मिकता और साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यहां तुलसीदास की संक्षिप्त जीवनी दी गई है:
प्रारंभिक जीवन:
तुलसीदास का जन्म भारत के वर्तमान उत्तर प्रदेश के एक गाँव राजापुर में 1532 ई. के आसपास हुआ था (सटीक जन्मतिथि ज्ञात नहीं है)। उनके माता-पिता हुलसी और आत्माराम दुबे थे। उनके जन्मस्थान को कभी-कभी राजापुर, चित्रकूट, या प्रयाग (अब इलाहाबाद) के रूप में जाना जाता है। उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और बचपन में उनका नाम रामबोला रखा गया था।
आध्यात्मिक यात्रा:
तुलसीदास ने छोटी उम्र से ही भगवान राम के प्रति गहरी भक्ति प्रदर्शित की। हालाँकि, आध्यात्मिकता की ओर झुकाव के कारण उन्हें अपने परिवार के विरोध का सामना करना पड़ा। अपनी भक्ति की खोज में, उन्होंने अपना घर छोड़ दिया और एक तीर्थयात्री के रूप में घूमते रहे, विभिन्न पवित्र स्थानों का दौरा किया और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त किया।
कहा जाता है कि तुलसीदास अपनी यात्रा के दौरान संत-संत हनुमान से मिले थे, जिन्होंने उन्हें अपने आध्यात्मिक पथ पर प्रेरित और मार्गदर्शन किया। ऐसा माना जाता है कि हनुमान के आशीर्वाद ने तुलसीदास की साहित्यिक और आध्यात्मिक उपलब्धियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
रामचरितमानस की रचना:
तुलसीदास की सबसे प्रसिद्ध कृति “रामचरितमानस” है, जिसकी रचना उन्होंने 16वीं शताब्दी के आसपास की थी। यह महाकाव्य कविता भगवान राम की कहानी बताती है, उनके गुणों और दिव्य गुणों पर जोर देती है। हिंदी की एक बोली, अवधी में लिखा गया, “रामचरितमानस” न केवल एक साहित्यिक कृति है, बल्कि भगवान राम के भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी है।
योगदान:
तुलसीदास के लेखन ने आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त करने के साधन के रूप में भगवान के प्रति समर्पण (भक्ति) के महत्व पर जोर दिया। उनके कार्यों का उद्देश्य सरल भाषा का उपयोग करके हिंदू धर्म की शिक्षाओं को आम लोगों तक पहुंचाना था।
रामचरितमानस” के अलावा, तुलसीदास ने कई अन्य रचनाएँ भी लिखीं, जिनमें भक्ति भजन और दार्शनिक ग्रंथ शामिल हैं। उनकी शिक्षाओं और लेखन ने भक्ति आंदोलन में योगदान दिया, जिसने परमात्मा के साथ व्यक्तिगत और भावनात्मक संबंध की मांग की।
बाद का जीवन और विरासत:
तुलसीदास ने अपना अधिकांश जीवन वाराणसी में बिताया, जहाँ उन्होंने लिखना, पढ़ाना और अपनी आध्यात्मिक शिक्षाओं का प्रसार करना जारी रखा। 1623 में उनका निधन हो गया और वे अपने पीछे एक गहन विरासत छोड़ गए जो आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है।
साहित्य, दर्शन और आध्यात्मिकता में तुलसीदास के योगदान का भारतीय संस्कृति और समाज पर स्थायी प्रभाव पड़ा है। भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति और भक्ति की शक्ति पर उनका जोर आध्यात्मिकता की गहरी समझ और परमात्मा के साथ सार्थक संबंध चाहने वाले लोगों के बीच गूंजता रहता है। उन्हें एक श्रद्धेय संत और कवि के रूप में सम्मानित किया जाता है, और उनके कार्यों का दुनिया भर के हिंदुओं द्वारा अध्ययन, पाठ और जश्न मनाया जाता है।
तुलसीदास जी की खास बातें
गोस्वामी तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में हुआ था। तुलसीदास जी एक बैरागी साधू, हिंदी साहित्य के महान कवि, साहित्यकार एवं दार्शनिक के रूप में जाने जाते हैं। तुलसीदास ने अपने जीवनकाल में कई रचनाओं की रचना की जो इस प्रकार हैं- महाकाव्य श्रीरामचरितमानस, कवितावली, जानकीमंगल, विनयपत्रिका, गीतावली, हनुमान चालीसा, बरवै रामायण आदि।
तुलसीदास ने अपना अधिकांश जीवन वाराणसी शहर में बिताया। वाराणसी में गंगा नदी पर प्रसिद्ध तुलसी घाट का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है। तुलसीदास द्वारा लिखा गया महाकाव्य श्रीरामचरितमानस को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में 46वां स्थान प्राप्त है।
जन्म को लेकर मान्यताएं
कई मान्यताओं के अनुसार, उन्हें संस्कृत में मूल रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का पुनर्जन्म भी माना जाता था। सामान्य रूप से बच्चे का जन्म 9 महीने में होता है, लेकिन तुलसीदास जी का जन्म 12 महीने अपनी मां की कोख में रहने के बाद अभुक्त मूल नक्षत्र में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि, जन्म लेते ही तुलसीदास जी के मुख से ‘राम’ शब्द निकला था, जिसके चलते उनका नाम रामबोला रखा गया। कलयुग में जन्में तुलसीदास जी को भगवान राम, लक्ष्मण और हनुमान जी के एक साथ दर्शन हुए थे।
तुलसीदासजी के अनमोल विचार
- काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान।।
इस दोहे के माध्यम से तुलसीदासजी कहते हैं कि जब किसी व्यक्ति पर काम यानी कामेच्छा, क्रोध, अहंकार और लालच हावी हो जाता है तो एक पढ़ा-लिखा और समझदार व्यक्ति भी अनपढ़ के तरह व्यवहार करने लगता है। इसलिए मनुष्य को इन सभी अवगुणों से बहुत दूर रहना चाहिए। - बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई।।
रामचरित मानस की ये चौपाई का जप करने से मनचाही नौकरी प्राप्त होती है और करियर में सफलता के शुभ संयोग बनते हैं। भरत ने जिस तरह चौदह वर्षों तक राजपाट संभालने के साथ तपस्वी की तरह जीवन यापन किया। उसी तरह मनुष्य का बुरा समय आने के बाद अच्छा समय भी आएगा। - जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भांती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥
अगर आप किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आपको हर रोज इस चौपाई का जप करना चाहिए। इस चौपाई का जप करने से परीक्षा में अच्छे अंक के साथ उत्तीर्ण होते हैं। - मनोरथ को पूरा करने के लिए
भव भेषज रघुनाथ जसु,सुनहि जे नर अरू नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहि त्रिसिरारि।। - आलस्य से मुक्ति पाने के लिए
हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रणाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम।।
आलस्य अगर बहुत ज्यादा रहता है उसके कारण मुकाम हासिल नहीं कर पा रहे हैं तो आलस्य से मुक्ति पाने के लिए इस चौपाई को हर रोज पढ़ना चाहिए। - जिमि सरिता सागर महुं जाही।
जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएं।
धरमसील पहिं जाहिं सुभाएं।।
इस चौपाई का जप करने से धन व वैभव में वृद्धि होती है और सात पीढ़ियां भी ऐशो आराम में रहती हैं। रामचरीत मानस का यह मंत्र दरिद्रता दूर करने और धन पाने में काफी मददगार साबित होता है। इस मंत्र के जप से लक्ष्मी घर में स्थाई रूप से बस जाती हैं। - साधक नाम जपहिं लय लाएं!
होहि सिद्धि अनिमादिक पाएं!!
रामचरितमानस की चौपाई का हर रोज जप करने से मन की शांति और पारिवारिक जीवन में सुख समृद्धि बनी रहेगी। - दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण।।
तुलसीदासजी ने कहा है कि मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए। क्योंकि दया ही हर धर्म का मूल यानी जड़ है। वहीं सभी पाप के मूल में अभिमान होता है। वहीं अगर अभिमान मनुष्य के अंदर आ जाए तो विवेक समाप्त हो जाता है और वह गलत मार्ग पर चला जाता है। - आवत ही हरषै नहीं नैनं नहीं सनेह। तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।
तुलसीदासजी कहते हैं कि जिस जगह आपके जाने से लोग प्रसन्न नहीं होते हों, अर्थात लोगों के अंदर आपके लिए प्रेम या स्नेह ना हो, वहां कभी भी नहीं जाना चाहिए। फिर चाहे वहां धन की ही बारिश क्यों न हो रही हो। - हरन कठिन कलि कलुष कलेसू!
महामोह निसि दलन दिनेसू!!
रामचरितमानस की इस चौपाई का हर रोज सुबह शाम जप करने से गृह क्लेश से संबंधित हर समस्या खत्म हो जाती है और परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम बना रहता है।
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