प्राचीन मान्यताओं के अनुसार कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भगवान विष्णु के शालिग्राम अवतार और माता तुलसी विवाह की परंपरा है हालांकि कई जगहों पर एकादशी को तुलसी विवाह की रस्में पूरी की जाती है।
क्यों मनाया जाता है तुलसी विवाह आइए हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं-
कथा के अनुसार जालंधर नाम का एक राक्षस बहुत ही शक्तिशाली और पराक्रमी था। जालंधर की पत्नी का नाम वृंदा था जो कि एक पतिव्रता पत्नी थी उसकी वीरता का रहस्य उसकी पत्नी वृंदा थी । इसी कारण वह हमेशा विजय हुआ करता था। जालंधर के अत्याचारों से परेशान होकर देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे प्रार्थना करने लगे हे- प्रभु हमारी जालंधर नाम के राक्षस से रक्षा कीजिए ये सुनकर भगवान विष्णु ने जालंधर के शक्ति को खत्म करने के लिए देवी वृंदा का पत्नी व्रत भंग करने का निर्णय किया और जालंधर का रूप धारण करके वृंदा से विवाह कर लिया। विवाह के बाद देवताओं से युद्ध में वृंदा का सती तत्व नष्ट होते ही जालंधर मारा गया । यह जानकर वृंदा बहुत क्रोधित हुई और जब उसे पता चला कि उससे छल से विवाह किया गया है और वह कोई और नहीं स्वयं भगवान विष्णु जी हैं तो वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया उन्होंने कहा तुमने मुझसे विवाह किया है। अब तुम भी स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्युलोक में जन्म लोगे। इतना कहते ही वृंदा अपने पति के साथ ही सती हो गयी। वृंदा के श्राप से ही भगवान विष्णु जी ने श्री राम के रूप में अयोध्या में जन्म लिया और फिर उन्हें सीता वियोग सहना पड़ा। तब विष्णु ने वृंदा को यह वरदान दिया कि तुम हमेशा तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा वह परमधाम को प्राप्त होगा तभी से विष्णु जी के एक रूप शालिग्राम के साथ तुलसी जी का विवाह किया जाता है ।
जानें इस बार कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि और कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि कब है? तुलसी विवाह 2022 कब है?
एकादशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 03, 2022 को शाम 07 बजकर 30 मिनट से शुरू
एकादशी तिथि समाप्त – नवम्बर 04, 2022 को शाम 06 बजकर 08 मिनट पर खत्म
तुलसी विवाह 5 नवंबर 2022 को किया जायेगा
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 05 नवंबर को शाम 06 बजकर 08 मिनट से शुरू
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 06 नवंबर को शाम 05 बजकर 06 मिनट पर समाप्त
तुलसी विवाह पूजा सामग्री
मूली, आंवला, बेर, शकरकंद, सिंघाड़ा, मूली, सीताफल, अमरुद और अन्य ऋतु, मंडप तैयार करने के लिए गन्ने, भगवान विष्णु की प्रतिमा, तुलसी का पौधा, चौकी, धूप, दीपक, वस्त्र, माला, फूल, सुहाग का सामान, सुहाग का प्रतीक लाल चुनरी, साड़ी, हल्दी।
तुलसी विवाह पूजा विधि
सबसे पहले तो तुलसी के गमले को अच्छे से फूलों से सजाये और उसके चारों और गन्ने का मंडप बनाकर उस पर लाल चुनरी उढ़ाये । लाल रंग की साड़ी से अच्छे से लपेट कर गमले को सजाये और तुलसी माता का चूड़ियां पहनाकर उनका श्रृंगार करें । गणेश जी सहित भगवान शालिग्राम और तुलसी माता की पूजा करें। नारियल पर दक्षिणा रखकर चढ़ाइये। भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिहासन हाथ से लेकर तुलसी जी के साथ परिक्रमा करवाएं। धूप के बाद आरती और विवाह के मंगल गीत गाए। मिठाई और प्रसाद का भोग लगाए। विवाह की सभी रस्मे समाप्त होने के बाद प्रसाद को बाँट दें।
तुलसी विवाह का महत्व
तुलसी जी विष्णु भगवान को बहुत प्रिय हैं। जिस घर में तुलसी जी की पूजा होती है उस घर में कभी भी धन धान्य की कमी नहीं रहती और हमेशा झोली खुशियों से भरी रहती हैं। माना जाता है कि अगर किसी को अपने मन की बात भगवान तक पहुंचानी हो तो वो तुलसी के जरिये पहुंचा सकता है। भगवान तुलसी मां की बात कभी नहीं टालते। तुलसी विवाह करने से कन्यादान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है । इसलिए अगर किसी ने कन्या दान न किया हो तो उसे जीवन में एक बार तुलसी विवाह करके कन्या दान करने का पुण्य अवश्य प्राप्त करना चाहिए ।
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