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चन्द्रगुप्त मौर्य इतिहास जीवन परिचय | Chandragupta Maurya History in hindi

Published on May 18, 2023 by Editor

चंद्रगुप्त मौर्य एक प्राचीन भारतीय सम्राट थे जो लगभग 340 ईसा पूर्व से 298 ईसा पूर्व तक जीवित रहे। वह मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे, जो प्राचीन भारत में सबसे बड़े और सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक बन गया। चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल को अक्सर भारत में शाही शासन की शुरुआत माना जाता है।चंद्रगुप्त द्वितीय का जन्म प्राचीन भारत के मगध राज्य में हुआ था। उसके पिता का नाम समुद्रगुप्त तथा माता का नाम दत्ता देवी था। पिता समुद्रगुप्त के बाद वह गुप्त वंश के राज सिंहासन पर बैठा। चंद्रगुप्त द्वितीय को विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है। उसने अपने पिता समुद्रगुप्त के सारे गुण ग्रहण कर लिए थे। उसने अपने पिता के द्वारा जीते हुए दूसरे राज्यों व पूरे भारत में विस्तारित गुप्त साम्राज्य को अखंड बनाये रखा।

Table of Contents

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  • चन्द्रगुप्त मौर्य का परिचय (Introduction)
  • अखंड भारत
  • पारिवारिक सम्बंध (Family Relationships)
  • चंद्रगुप्त द्वितीय के सिक्के (Coins of Chandragupta II)
  • चंद्रगुप्त द्वितीय की मृत्यु (Death of Chandragupta II)

चन्द्रगुप्त मौर्य का परिचय (Introduction)

जीवन परिचय बिंदु चन्द्रगुप्त जीवन परिचय
पूरा नाम चन्द्रगुप्त मौर्य
जन्म 340 BC
जन्म स्थान पाटलीपुत्र , बिहार
माता-पिता नंदा, मुरा
पत्नी दुर्धरा
बेटे बिंदुसार 

अशोका, सुसीम, विताशोका (पोते)

मोहनजोदड़ों पाकिस्तान में स्थित मुर्दों का घर है, इसका निर्माण 2600 बीसी में हुआ था .

चंद्रगुप्त मौर्य और उनके जीवन इतिहास के बारे में कुछ प्रमुख बातें इस प्रकार हैं:

सत्ता में वृद्धि चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म एक विनम्र पृष्ठभूमि में हुआ था, लेकिन उन्होंने छोटी उम्र से ही महान नेतृत्व गुणों का प्रदर्शन किया। वह चाणक्य के शिष्य बने, जिन्हें कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है, जो एक प्रसिद्ध विद्वान और रणनीतिकार थे। चाणक्य के मार्गदर्शन में, चंद्रगुप्त ने एक सेना का आयोजन किया और मौर्य साम्राज्य की स्थापना करते हुए नंद वंश को सफलतापूर्वक उखाड़ फेंका।

मगध की विजय: नंद वंश को उखाड़ फेंकने के बाद, चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध की राजधानी पर कब्जा कर लिया और इसे अपने साम्राज्य का केंद्र बना लिया। मगध प्राचीन भारत में एक महत्वपूर्ण क्षेत्र था और मौर्यों से पहले विभिन्न राजवंशों द्वारा शासित किया गया था।

साम्राज्य का विस्तार चन्द्रगुप्त मौर्य मगध में ही नहीं रुके। उनके शासन में, सैन्य अभियानों के माध्यम से मौर्य साम्राज्य का तेजी से विस्तार हुआ। उसने विभिन्न क्षेत्रीय शक्तियों को हराया और एक विशाल क्षेत्र पर अपना नियंत्रण मजबूत किया, जो पश्चिम में वर्तमान अफगानिस्तान और पाकिस्तान से लेकर पूर्व में बांग्लादेश के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ था।

सेल्यूकस I के साथ गठबंधन: सेल्यूकस I के शासनकाल में चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य हेलेनिस्टिक सेल्यूसिड साम्राज्य के संपर्क में आया। इस समझौते के अनुसार, चंद्रगुप्त को 500 युद्ध हाथियों के साथ सेल्यूकस प्रदान करने के बदले में विशाल प्रदेश प्राप्त हुए।

जैन धर्म और सेवानिवृत्ति: बाद के वर्षों में, चंद्रगुप्त मौर्य ने एक अहिंसक धार्मिक परंपरा जैन धर्म को अपनाया। उन्होंने अपने सिंहासन को त्याग दिया और अपने बेटे बिन्दुसार के पक्ष में त्याग दिया। चंद्रगुप्त ने अपना शेष जीवन एक तपस्वी के रूप में व्यतीत किया, अपनी मृत्यु तक उपवास किया।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन के ऐतिहासिक विवरण मुख्य रूप से चाणक्य द्वारा अर्थशास्त्र और ग्रीक इतिहासकार मेगस्थनीज द्वारा इंडिका जैसे प्राचीन ग्रंथों से आते हैं। ये स्रोत चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन और उपलब्धियों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं।

अखंड भारत

चाणक्य और पोरस की सहायता से चन्द्रगुप्त मौर्य मगध के सिंहासन पर बैठे और चन्द्रगुप्त ने यूनानियों के अधिकार से पंजाब को मुक्त करा लिया। चंद्रगुप्त मौर्य ने नंदवंशीय शासक धनानंद को पराजित कर 25 वर्ष की अल्पायु में मगध के सिंहासन की बागडोर संभाली थी। चंद्रगुप्त का नाम प्राचीनतम अभिलेख साक्ष्य रुद्रदामन का जुनागढ़ अभिलेख में मिलता है।

चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन-प्रबंध बड़ा व्यवस्थित था। इसका परिचय यूनानी राजदूत मेगस्थनीज के विवरण और कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ से मिलता है। चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र था। 18 महाजनपदों में बंटे भारत में उसका जनपद सबसे शक्तिशाली था। चन्द्रगुप्त से पूर्व मगध पर क्रूर धनानंद का शासन था, जो बिम्बिसार और अजातशत्रु का वंशज था।

चंद्रगुप्त-धनानंद युद्ध : चाणक्य के शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य (322 से 298 ईपू तक) का धनानंद से जो युद्ध हुआ था उसने देश का इतिहास बदलकर रख दिया। प्राचीन भारत के 18 जनपदों में से एक था महाजनपद- मगध। मगध का राजा था धनानंद। इस युद्ध के बारे में सभी जानते हैं। चंद्रगुप्त ने उसके शासन को उखाड़ फेंका और मौर्य वंश की स्थाप‍ना की।

चंद्रगुप्त मौर्य जा जैन धर्म की ओर ज्यादा झुकाव हो चला था। वे अपने अंतिम समय में अपने पुत्र बिंदुसार को राजपाट सौंपकर जैनाचार्य भद्रबाहू से दीक्षा लेकर उनके साथ श्रवणबेलागोला (मैसूर के पास) चले गए थे। तथा चंद्रगिरी पहाड़ी पर काया क्लेश द्वारा 297 ईसा पूर्व अपने प्राण त्याग दिए थे।

चंद्रगुप्त का दूसरा नाम क्या था?

चंद्रगुप्त द्वितीय का जन्म प्राचीन भारत के मगध राज्य में हुआ था। उसके पिता का नाम समुद्रगुप्त तथा माता का नाम दत्ता देवी था। पिता समुद्रगुप्त के बाद वह गुप्त वंश के राज सिंहासन पर बैठा। चंद्रगुप्त द्वितीय को विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है।

पारिवारिक सम्बंध (Family Relationships)

चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक नरेश रूद्रसेन द्वितीय से किया। वाकाटक राज्य गुप्त साम्राज्य के दक्षिण के दक्कन का क्षेत्र था। कुछ वर्षों बाद, 390 इस्वी में रूद्रसेन की मृत्यु हो गई। अब प्रभावती अपने नन्हें पुत्र के राज्य-निरीक्षक के रूप में शासन संभालने लगी।

चंद्रगुप्त ने अप्रत्यक्ष रूप से वाकाटक को अपने राज्य में मिलाकर उज्जैन को दूसरी राजधानी घोषित किया जिससे उसे समुद्री व्यापार से अन्य संसाधनों की प्राप्ति होने लगी। इन पारिवारिक संबंधों से उसे मजबूत सरंक्षण प्राप्त हो गया जिसके कारण वह (Chandragupta II) शकों पर विजय प्राप्त कर सका।

एक संस्कृत नाटक देवीचंद्रगुप्तम में यह बताया गया है कि चंद्रगुप्त द्वितीय का एक बड़ा भाई था जिसका नाम रामगुप्त था। रामगुप्त ने पिता समुद्रगुप्त के बाद शासन की बागडोर संभाली। परंतु, चंद्रगुप्त ने उसको सिंहासन से हटा दिया और खुद राजा बन गया।

हालांकि नाटक की ये बातें विवादास्पद हैं। रामगुप्त के इतिहास की सटीकता और वास्तविकता का इस नाटक से कोई पता नहीं चलता है। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक यह सत्य है परंतु, कुछ इसे एक नाटक मात्र ही समझते हैं।

चंद्रगुप्त द्वितीय के सिक्के (Coins of Chandragupta II)

चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपने पिता समुद्रगुप्त के जारी किए हुए सोने के सिक्कों को प्रचलन में रखा, जिनके मुख्य प्रकार ये हैं- (Chandragupta II’s old gold coins issued by Samudragupta)

  • धनुर्धारी
  • बाघ कातिल
  • राजदंड
    चंद्रगुप्त ने राजदंड सिक्कों को बहुत कम जारी किया क्योंकि वह एक शांतिप्रिय शासक था जो जनता को कष्ट नहीं देना चाहता था।

चंद्रगुप्त द्वितीय के द्वारा जारी किए गए नए सोने सिक्के (Chandragupta II’s new gold coins) –

  • घुड़सवार
  • शेर कातिल
    इन सिक्कों को उसके पुत्र कुमारगुप्त प्रथम ने अपने शासन में भी जारी रखा। इसके अलावा, चंद्रगुप्त ने शकों पर विजय प्राप्त करने के बाद विशेष रूप से चांदी के सिक्के जारी किए। शकों के राज्य में चांदी के सिक्के पहले से चलते थे जिन पर उनके राज्य का प्रतीक बना हुआ था। चंद्रगुप्त ने उनके राज्य को राज्य के प्रतीक को हटा करके अपने राज्य के गरूड़ प्रतीक को बनवाया। ये सिक्के प्रायः शकों के सिक्कों जैसे ही हैं।

इन सिक्कों पर चंद्रगुप्त द्वितीय (Chandragupta II) को “राजाओं का राजा”, “चंद्रगुप्त विक्रमादित्य”, “विष्णु का भक्त” बताया गया है।

चंद्रगुप्त द्वितीय की मृत्यु (Death of Chandragupta II)

लगभग 415 ईस्वी में सम्राट चंद्रगुप्त II की मृत्यु हो गई। इसके बाद, उसका पुत्र कुमारगुप्त प्रथम गुप्त वंश की राजगद्दी पर बैठा। चंद्रगुप्त (Chandragupta II) ने 375 ईस्वी से लेकर 415 ईस्वी तक लगभग 40 वर्षों तक प्राचीन भारत पर शासन किया। चंद्रगुप्त द्वितीय को विक्रमादित्य की उपाधि दी गई क्योंकि उसके कार्य व वीरता राजा विक्रमादित्य के जैसी थी।

 

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