हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल सावन महीने की पूर्णिमा तिथि पर रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। भारत में वैसे तो कई तरह के पर्व और त्योहार मनाए जाते हैं, लेकिन रक्षाबंधन का अलग ही महत्व है। हर साल ये पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई में राखी बांधती हैं और उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं। वहीं भाई प्रेमरूपी रक्षा धागे को बंधवा कर बहन की उम्र भर रक्षा करने का संकल्प लेते हैं। रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है, जिसे मनाते तो सिर्फ एक दिन हैं, लेकिन इससे बनने वाले रिश्ते जिंदगी भर निभाए जाते हैं। हालांकि इस साल भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन एक नहीं बल्कि 2 दिन माना जा रहा है। जानिए इसका क्या कारण है और बहनें किस दिन भाइयों की कलाई पर राखी बांधेंगी।
राखी बांधने का शुभ मुर्हूत (Raksha Bandhan 2023 Shubh muhurat)
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ 30 अगस्त की सुबह 10 बजकर 58 मिनट पर.
पूर्णिमा तिथि की समापन 31 अगस्त की सुबह 07 बजकर 05 मिनट पर.
भद्रा की शुरुआत 30 अगस्त की सुबह 10 बजकर 58 मिनट पर.
भद्रा की समाप्ति 30 अगस्त की रात 09 बजकर 01 मिनट पर.
इस साल रक्षाबंधन का पर्व 30 और 31 अगस्त दो दिन मनाया जाएगा.
भद्रा काल में राखी बांधना अशुभ माना जाता है.
राखी बांधने का शुभ समय- 31 अगस्त को सूर्योंदय से लेकर सुबह 07 बजकर 05 मिनट तक.
रक्षाबंधन पर भद्रा का साया
सावन पूर्णिमा पर रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है. इस साल सावन माह की पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त को है. इस साल 30 अगस्त को पूर्णिमा वाले दिन भद्रा का साया है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि यदि श्रावण पूर्णिमा तिथि पर भद्रा का साया हो तो भद्राकाल तक राखी नहीं बांधना चाहिए. भद्राकाल के समापन के बाद ही राखी बांधी जाती है, क्योंकि भद्रा काल में राखी बांधना अशुभ माना जाता है. ऐसे में इस साल रक्षाबंधन का पर्व 30 और 31 अगस्त दो दिन मनाया जाएगा.
30 अगस्त को राखी बांधने का शुभ मुहूर्त नहीं
ऐसे में 30 अगस्त को भद्रा के कारण राखी बांधने का मुहूर्त दिन में नहीं है. इस दिन रात में 9 बजे के बाद राखी बांधने का मुहूर्त है. इसके अलावा 31 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा सुबह 07 बजकर 05 मिनट तक है और इस समय में भद्रा नहीं है. ऐसे में 31 अगस्त को सुबह 7 बजे तक बहनें भाई को राखी बांध सकती हैं. इस प्रकार से इस साल रक्षाबंधन 2 दिन 30 और 31 अगस्त को मनाया जा सकता है.
भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं
मान्यता है कि है कि शूर्पणखा ने अपने भाई रावण को भद्रा काल में राखी बांध दी थी, जिस वजह से रावण के पूरे कुल का सर्वनाश हो गया. इसलिए ऐसा माना जाता है कि भद्राकाल में राखी नहीं बांधनी चाहिए. यह भी कहा जाता है कि भद्रा में राखी बांधने से भाई की उम्र कम होती है.
जानें भद्रा को क्यों माना जाता हैं अशुभ
किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा योग का विशेष ध्यान रखा जाता है. क्योंकि भद्रा काल में शुभ कार्य और मंगल उत्सव की शुरुआत या समाप्ति और शुभ नहीं मानी जाती है. भद्रा काल की अशुभता को मानकर कोई भी आस्थावान शुभ कार्य नहीं करता है. शास्त्रों के अनुसार, भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और राजा सनी की बहन है. सनी की तरह ही इसका स्वभाव भी कड़क बताया गया है. उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करक में स्थान दिया. भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्य, यात्रा और उत्पादन अधिकारियों को निषेध माना गया. लेकिन भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनीतिक चुनाव कार्य शुभ फल देने वाले माने गए हैं.
पंचांग में भद्रा का महत्व
हिंदू पंचांग में पांच प्रमुख अंग होते हैं. यह है तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण. इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है. यह तिथि का आधा भाग होता है. करण की संख्या 11 होती है. यह चर और अचर में बांटे गए हैं. चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वाणिज और विष्टि गिने जाते है. अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं. इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है. यह सदैव गतिशील होती है. पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है. भद्रा का शाब्दिक अर्थ है- कल्याण करने वाली. लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं.
भद्रा में भूलकर भी न करें शुभ कार्य
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है. जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या उनका नाश करने वाली मानी गई है. जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा विष्टि करण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है. इस समय सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं. इसके दोष निवारण के लिए भद्रा व्रत का विधान भी धर्मग्रंथों में बताया गया है.
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