यह गुप्त नवरात्रि से जुड़ी प्रामाणिक और प्राचीन कथा है। इस कथा के अनुसार एक बार श्रृंगी ऋषि भक्तों को दर्शन दे रहे थे।
अचानक भीड़ में से एक स्त्री निकली और श्रृंगी ऋषि से विस्मित होकर बोली कि मेरे पति सदा ऐयाशी से घिरे रहते हैं, जिसके कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती।
वह धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों को भी करने में असमर्थ है। साधु-संत भी अपने हिस्से का अन्न समर्पित नहीं कर पाते हैं। मेरे पति मांसाहारी हैं, जुआरी हैं, लेकिन मैं मां दुर्गा की सेवा करना, उनकी पूजा करना और अपने जीवन और परिवार को सफल बनाना चाहती हूं।
महिला की भक्ति से ऋषि श्रृंगी बहुत प्रभावित हुए। उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए मुनि ने कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रि से तो आम लोग परिचित हैं, लेकिन इसके अलावा भी 2 और नवरात्रि हैं जिन्हें ‘गुप्त नवरात्रि’ कहा जाता है।
उन्होंने कहा कि प्रकट नवरात्रों में 9 देवियों की पूजा की जाती है और गुप्त नवरात्रों में 10 महाविद्याओं की पूजा की जाती है। इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरूप का नाम सर्वेश्वर्यकारिणी देवी है। यदि कोई भी भक्त इन गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा करता है तो मां उसका जीवन सफल कर देती हैं।
ऋषि श्रृंगी ने आगे कहा कि कोई लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी या पूजा करने में असमर्थ व्यक्ति भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की पूजा करता है तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता नहीं है। श्रृंगी ऋषि के कहने पर उस महिला ने पूरी श्रद्धा से गुप्त नवरात्रि की पूजा की।
माता उस पर प्रसन्न हुई और उस स्त्री का जीवन बदलने लगा। उनके घर में सुख-शांति आई। गलत रास्ते पर चल रहा पति सही रास्ते पर आ गया। गुप्त नवरात्रि में माता की आराधना से उनका जीवन फिर से खिल उठा।
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