श्री राधा रानी के नाम की महिमा अनंत है। श्री राधा नाम को कोई मन्त्र नही है ये स्वयं में ही महा मन्त्र है। श्री राधारानी के नाम का इतना प्रभाव की सभी देवता और यहाँ तक की भगवान भी राधा जी को भी भजते है, जपते है।
आपने कभी किसी भगवान को किसी महाशक्ति के पैर दबाते हुए देखता है। पर साक्षात भगवान श्री कृष्ण जी राधा रानी के चरणो में लोट लगते है। आइये किशोरी जी के नाम की महिमा को जानिए।
श्री राधे रानी बरसाने वाली है। सभी कहते है-
राधे, राधे, राधे , बरसाने वारी राधे।
क्योंकि श्री राधारानी साक्षात कृपा करने वाले है। वो गरजने वाली नही है। क्योंकि जो गरजते है वो बरसते नहीं। लेकिन हमारी प्यारी राधारानी बरसाने वारी है। वो बस अपनी कृपा भक्तों पर बरसाती रहती है। ब्रजमंडल की जो अधिष्ठात्री देवी हैं,वो हमारी श्यामा जी श्री राधा रानी हैं! आप जानते हो श्री राधारानी के नाम का जो आश्रय लेते है उसके आगे भगवन विष्णु सुदर्शन चक्र लेके चलते है। और पीछे भगवान शिव जी त्रिशूल लेके चलते है। जिसके दांये स्वयं इंद्र वज्र लेके चलते है और बाएं वरुण देवता छत्र लेके चलते है। ऐसा प्रभाव है हमारी प्यारी श्री राधारानी के नाम का। बस एक बार उनके नाम का आश्रय ले लीजिये। और उन पर सब छोड़ दीजिये। वो जरूर कृपा करेंगी।
राधा रानी कृपा
राधे राधे जपते रहिये दिन और रात। गुरुदेव एक सीधा सा अर्थ बताते है श्री राधा नाम का- राह-दे । जो आपको रास्ता दिखाए वही वो हमारी श्री राधारानी है।
राधा का प्रेम निष्काम और नि:स्वार्थ है। उनका सब कुछ श्रीकृष्ण को समर्पित है, लेकिन वे बदले में उनसे कोई कामना की पूर्ति नहीं चाहतीं। राधा हमेशा श्रीकृष्ण को आनंद देने के लिए उद्यत रहती हैं। इसी प्रकार मनुष्य जब सर्वस्व-समर्पण की भावना के साथ कृष्ण प्रेम में लीन हो जाता है, तभी वह राधा-भाव ग्रहण कर पाता है। इसलिए कृष्णप्रेमरूपीगिरिराज का शिखर है राधाभाव। तभी तो श्रीकृष्ण का सामीप्य पाने के लिए हर कोई राधारानीका आश्रय लेता है।
महाभावस्वरूपात्वंकृष्णप्रियावरीयसी।
प्रेमभक्तिप्रदेदेवि राधिकेत्वांनमाम्यहम्॥
जब वृन्दावन की महिमा गाई जाती है सबसे पहले यही बात आती है की राधा रानी के पग पग में प्रयाग बसता है।
श्री राधारानी के पग पग पर प्रयाग जहाँ, केशव की केलि-कुञ्ज, कोटि-कोटि काशी है।
यमुना में जगन्नाथ, रेणुका में रामेश्वर, तरु-तरु पे पड़े रहत अयोध्या निवासी हैं।
गोपिन के द्वार पर हरिद्वार बसत जहाँ बद्री, केदारनाथ , फिरत दास-दासी हैं।
तो स्वर्ग, अपवर्ग हमें लेकर करेंगे क्या, जान लो हमें हम वृन्दावन वासी हैं।
राधा साध्यं, साधनं यस्य राधा |
मन्त्रो राधा, मन्त्रदात्री च राधा |
सर्वं राधा, जीवनं यस्य राधा |
राधा राधा वाचितां यस्य शेषं |
भूमि तत्व जल तत्व अग्नि तत्व पवन तत्व,
ब्रह्म तत्व व्योम तत्व विष्णु तत्व भोरी है।
सनकादिक सिद्ध तत्व आनंद प्रसिद्ध तत्व,
नारद सुरेश तत्व शिव तत्व गोरी है ॥
प्रेमी कहे नाग किन्नरका तत्व देख्यो,
शेष और महेश तत्व नेति-नेति जोरी है ।
तत्वन के तत्व जग जीवन श्रीकृष्ण चन्द्र,
कृष्ण हू को तत्व वृषभानु की किशोरी है।
हे राधे करुणामयी शुललिते हे कृष्ण चिंतामणि
हे श्री रास रसेश्वरी शुविमले वृन्दावनाधिश्वरि |
कान्ते कांति प्रदायनी मधुमयी मोदप्रदे माधवी
भक्तानंद समस्तसाख्य सरिते श्री राधिके पातु मां ||
“राधे तू बड़भागिनी , कौन तपस्या कीन्ह ।
तीन लोक तारन तरन , सो तेरे आधीन ॥ “
ब्रम्हवैवर्तपुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने और श्रीराधा के अभेद का प्रतिपादन करते हुए कहा है कि श्रीराधा के कृपा कटाक्ष के बिना किसी को मेरे प्रेम की उपलब्धि ही नहीं हो सकती। वास्तव में श्रीराधा कृष्ण एक ही देह हैं। श्रीकृष्ण की प्राप्ति और मोक्ष दोनों श्रीराधाजी की कृपा दृष्टि पर ही निभ्रर हैं।
श्री राधा नाम की महिमा का स्वयं श्री कृष्ण ने इस प्रकार गान किया है-“जिस समय मैं किसी के मुख से ’रा’ अक्षर सुन लेता हूँ, उसी समय उसे अपना उत्तम भक्ति-प्रेम प्रदान कर देता हूँ और ’धा’ शब्द का उच्चारण करने पर तो मैं प्रियतमा श्री राधा का नाम सुनने के लोभ से उसके पीछे-पीछे दौड़(धावति) लगा देता हूँ” ब्रज के रसिक संत श्री किशोरी अली जी ने इस भाव को प्रकट किया है।
आधौ नाम तारिहै राधा।
‘र’ के कहत रोग सब मिटिहैं, ‘ध’ के कहत मिटै सब बाधा॥
राधा राधा नाम की महिमा, गावत वेद पुराण अगाधा।
अलि किशोरी रटौ निरंतर, वेगहि लग जाय भाव समाधा॥
श्री राधा रानी कौन है |
स्कंद पुराण के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की आत्मा हैं। इसी कारण भक्तजन सीधी-साधी भाषा में उन्हें ‘राधारमण’ कहकर पुकारते हैं।
पद्म पुराण में ‘परमानंद’ रस को ही राधा-कृष्ण का युगल-स्वरूप माना गया है। इनकी आराधना के बिना जीव परमानंद का अनुभव नहीं कर सकता।
यदि श्रीकृष्ण के साथ से राधा को हटा दिया जाए तो श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व माधुर्यहीन हो जाता। राधा के ही कारण श्रीकृष्ण रासेश्वर हैं। भगवान श्री कृष्ण के नाम से पहले हमेशा भगवती राधा का नाम लिया जाता है। कहते हैं कि जो व्यक्ति राधा का नाम नहीं लेता है सिर्फ कृष्ण-कृष्ण रटता रहता है वह उसी प्रकार अपना समय नष्ट करता है जैसे कोई रेत पर बैठकर मछली पकड़ने का प्रयास करता है।
वन्दौं राधा के परम पावन पद अरविन्द।
जिनको मृदु मकरन्द नित चाहत स्याम मिलिन्द।।
श्रीमद् देवीभाग्वत् नामक ग्रंथ में उल्लेख मिलता है कि जो भक्त राधा का नाम लेता है भगवान श्री कृष्ण सिर्फ उसी की पुकार सुनते हैं। इसलिए कृष्ण को पुकारना है तो राधा को पहले बुलाओ। जहां श्री भगवती राधा होंगी वहां कृष्ण खुद ही चले आएंगे।
भगवान कृष्ण को कौन पसंद है?
पुराणों के अनुसार भगवान कृष्ण स्वयं कहते हैं कि राधा उनकी आत्मा है। वह राधा में और राधा उनमें बसती है। कृष्ण को पसंद है कि लोग भले ही उनका नाम नहीं लें लेकिन राधा का नाम जपते रहें।
Leave a Reply