गंगा सप्तमी 2024 की आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। इस अवसर पर मां गंगा की पूजा-अर्चना करने और उनके धार्मिक महत्व को समझाने का अच्छा मौका है। यह पर्व हिंदू धर्म में माँ गंगा को समर्पित है और इस दिन उनका जन्म तिथि माना जाता है। गंगा सप्तमी के दिन लोग गंगा नदी में स्नान करते हैं और उसे पूजनीय मानते हैं। यह एक धार्मिक और सामाजिक महोत्सव है जो भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर गंगा सप्तमी मनाई जाती है. इस बार गंगा सप्तमी 14 मई, मंगलवार के दिन मनाई जा रही है. सनातन धर्म में गंगा नदी को बेहद पवित्र नदी माना गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति गंगा नदी में स्नान करता है, उसको अपने पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. गंगा सप्तमी के दिन मां गंगा (Maa Ganga) की विधि-विधान से पूजा करना शुभ फलदाई माना गया है
कब और क्यों मनाई जाती है गंगा सप्तमी
हिंदू पंचांग के अनुसार, गंगा सप्तमी हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है, जो इस बार 13 मई 2024, दिन सोमवार की रात 2:50 बजे से शुरू हो रही है इसका समापन 15 मई 2024, दिन बुधवार की सुबह 4:19 बजे होगा. उदया तिथि के अनुसार, गंगा सप्तमी 14 मई को मनाई जा रही है।
माँ गंगा की कहानी हिंदू पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। गंगा नदी का जन्म भगवान विष्णु के एक अवतार, भगीरथ के प्रयासों से हुआ था। भगीरथ के पुरखों में एक राजा था जिनका नाम सागर था। राजा सागर के बालक थे, उन्हें अपने पुरखों के अनुरोध पर एक अत्यंत उत्सुक मिशन पर भेजा गया था। वह था उनकी धर्मपत्नी के वर का खोज करना।
राजा सागर के बालक नदी के किनारे जा रहे थे, जब उन्हें लगा कि एक महान यज्ञ का खोज नीराशा में खत्म हो गया है। उन्होंने सोचा कि यज्ञ की यश उन्हें मिलेगी अगर वे जल की एक अविष्कृत नदी को खोज प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार, उन्होंने गंगा नदी के खोज का निर्णय किया।
भगीरथ ने भगवान शिव से गंगा को पृथ्वी पर लाने का अनुरोध किया। शिव ने भगीरथ के अनुरोध को सुनकर गंगा को अपने जटाओं में समाहित किया और फिर धरती पर उतार दिया। इस प्रकार, गंगा नदी पृथ्वी पर आई और भगीरथ के प्रयासों से वह सागर नदी की रूप में प्रसिद्ध हो गई।
गंगा को माँ के रूप में पूजा जाता है और उसका जल पवित्र माना जाता है। गंगा नदी के जल का स्नान करने से मान्यता है कि व्यक्ति के पाप धो जाते हैं और वह मोक्ष की प्राप्ति के पात्र बनता है। इसीलिए, गंगा माता की कथा हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
गंगा सप्तमी के अवसर पर जानें मां गंगा को लेकर प्रचलित एक पौराणिक कथा
क्यों मां गंगा ने अपने 7 पुत्रों को गंगा नदी में डुबो दिया था?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार राजा शांतनु, मां गंगा के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर गए थे. गंगा जी ने उनके प्रस्ताव को एक शर्त के साथ स्वीकार किया कि आप कभी मुझसे कोई प्रश्न नहीं करेंगे और ना ही कभी भी किसी चीज को लेकर रोकेंगे।
राजा ने गंगा जी की ये शर्त मान ली और उनका विवाह मां गंगा के साथ हो गया. शादी के बाद जब राजा शांतनु और मां गंगा के यहां पहले पुत्र ने जन्म लिया तो राजा अति प्रसन्न हुए, लेकिन कुछ ही समय बाद मां गंगा ने उस पुत्र को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया।
राजा शांतनु मां गंगा से ऐसा करने का कारण जानना चाहते थे लेकिन उन्होंने मां गंगा को उनसे कोई भी प्रश्न न पूछने का वचन दिया था इसलिए वे मां गंगा से कोई प्रश्न नहीं पूछ पाए। समय बीतता गया और मां गंगा जी ने एक के बाद एक सात पुत्रों को उसी इसी तरह गंगा में प्रवाहित कर दिया. जब मां गंगा अपने आठवें पुत्र को गंगा नदी में प्रवाहित करने के लिए ले जा रही थीं तब उनके पति राजा शांतनु खुद को रोक नहीं पाए और मां गंगा से ऐसा करने का कारण पूछा।
तब मां गंगा ने राजा को बताया कि अपने जिन पुत्रों को मैंने गंगा में प्रवाहित किया, वे सब देवता थे जिन्होंने हमारे पुत्रों के रूप में इस धरती पर जन्म लिया था. इन सभी को ऋषि वशिष्ठ ने मनुष्य योनि में जन्म लेने और दुख भोगने का श्राप दिया था. इन्ही देवताओं की प्रार्थना पर मैं इनकी माता बनी और इनको मनुष्य लोक से मुक्ति प्रदान की।इतना कहकर अपने आठवें पुत्र को राजा शांतनु के हाथों में सौंपकर, अपनी शर्त के अनुसार मां गंगा अंतर्धान हो गईं।
राजा शांतनु और गंगा जी के आठवें पुत्र का नाम देवव्रत था, जो बाद में भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए. माना जाता है ऋषि वशिष्ठ के श्राप के कारण ही भीष्म को पृथ्वी पर जन्म लेकर आजीवन दुखों का सामना करना पड़ा।
गंगा सप्तमी की पूजा विधि
14 मई यानी गंगा सप्तमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
- इसके बाद दाएं हाथ में चावल और जल लेकर व्रत करने का संकल्प लें।
- अब पूजा घर के समक्ष लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर देवी गंगा की तस्वीर, प्रतिमा या गंगा जल को स्थापित करें।
- अब देवी की प्रतिमा को फूल अर्पित करें, कुमकुम लगाएं, गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं और हाथ जोड़कर प्रणाम करें।
- अब मां गंगा को सोलह श्रृंगार अर्पित करें।
- इसके बाद देवी गंगा को भोग लगाएं और आखिर में विधिपूर्वक आरती करें।
- अंत में देवी गंगा से भूल चूक की माफी मांग लें।
श्री गंगा जी की स्तुति
गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम् ।
त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ॥
माँ गंगा स्तोत्रम्॥
देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे
त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले
मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥१॥
भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव
जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं
पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ २॥
हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे
हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं
कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥ ३॥
तव जलममलं येन निपीतं,
परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः
किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥ ४॥
पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे
खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे ।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये,
पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ॥ ५॥
कल्पलतामिव फलदां लोके,
प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गङ्गे
विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे ॥ ६॥
तव चेन्मातः स्रोतःस्नातः
पुनरपि जठरे सोऽपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे
कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ॥ ७॥
पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे
जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे
सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ ८॥
रोगं शोकं तापं पापं
हर मे भगवति कुमतिकलापम्।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे
त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे॥ ९॥
अलकानन्दे परमानन्दे
कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवासः
खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥ १०॥
वरमिह नीरे कमठो मीनः
किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव
न हि दूरे नृपतिकुलीनः॥ ११॥
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये
देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं
पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥ १२॥
येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां
भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकान्तापज्झटिकाभिः
परमानन्दकलितललिताभिः ॥ १३॥
गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं
वाञ्छितफलदं विमलं सारम् ।
शङ्करसेवकशङ्कररचितं पठति
सुखी स्तव इति च समाप्तः ॥ १४॥
देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे
त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले
मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥
– श्री शङ्कराचार्य कृतं
सनातन मान्यताओं के अनुसार, गंगा दुनिया की सबसे पवित्रतम नदी है। और गंगा नदी को माँ गंगा के नाम से सम्मानित किया गया है। शास्त्रों में इसे पतितपावनी अर्थात लोगों के पाप को धोने वाली नदी कहकर प्रशंसा की गई है| किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में गंगा जल का प्रयोग पूजा की बस्तुओं को पवित्र करने के लिए किया जाता है। माँ गंगा की आरती के साथ भक्तजन गंगा चालीसा को भी अपनी पूजा में शामिल करते हैं।
॥दोहा॥
जय जय जय जग पावनी,
जयति देवसरि गंग ।
जय शिव जटा निवासिनी,
अनुपम तुंग तरंग ॥
॥चौपाई॥
जय जय जननी हराना अघखानी ।
आनंद करनी गंगा महारानी ॥
जय भगीरथी सुरसरि माता ।
कलिमल मूल डालिनी विख्याता ॥
जय जय जहानु सुता अघ हनानी ।
भीष्म की माता जगा जननी ॥
धवल कमल दल मम तनु सजे ।
लखी शत शरद चंद्र छवि लजाई ॥ ४ ॥
वहां मकर विमल शुची सोहें ।
अमिया कलश कर लखी मन मोहें ॥
जदिता रत्ना कंचन आभूषण ।
हिय मणि हर, हरानितम दूषण ॥
जग पावनी त्रय ताप नासवनी ।
तरल तरंग तुंग मन भावनी ॥
जो गणपति अति पूज्य प्रधान ।
इहूं ते प्रथम गंगा अस्नाना ॥ ८ ॥
ब्रह्मा कमंडल वासिनी देवी ।
श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि ॥
साथी सहस्त्र सागर सुत तरयो ।
गंगा सागर तीरथ धरयो ॥
अगम तरंग उठ्यो मन भवन ।
लखी तीरथ हरिद्वार सुहावन ॥
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवेता ।
धरयो मातु पुनि काशी करवत ॥ १२ ॥
धनी धनी सुरसरि स्वर्ग की सीधी ।
तरनी अमिता पितु पड़ पिरही ॥
भागीरथी ताप कियो उपारा ।
दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा ॥
जब जग जननी चल्यो हहराई ।
शम्भु जाता महं रह्यो समाई ॥
वर्षा पर्यंत गंगा महारानी ।
रहीं शम्भू के जाता भुलानी ॥ १६ ॥
पुनि भागीरथी शम्भुहीं ध्यायो ।
तब इक बूंद जटा से पायो ॥
ताते मातु भें त्रय धारा ।
मृत्यु लोक, नाभा, अरु पातारा ॥
गईं पाताल प्रभावती नामा ।
मन्दाकिनी गई गगन ललामा ॥
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी ।
कलिमल हरनी अगम जग पावनि ॥ २० ॥
धनि मइया तब महिमा भारी ।
धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी ॥
मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी ।
धनि सुर सरित सकल भयनासिनी ॥
पन करत निर्मल गंगा जल ।
पावत मन इच्छित अनंत फल ॥
पुरव जन्म पुण्य जब जागत ।
तबहीं ध्यान गंगा महं लागत ॥ २४ ॥
जई पगु सुरसरी हेतु उठावही ।
तई जगि अश्वमेघ फल पावहि ॥
महा पतित जिन कहू न तारे ।
तिन तारे इक नाम तिहारे ॥
शत योजन हूं से जो ध्यावहिं ।
निशचाई विष्णु लोक पद पावहीं ॥
नाम भजत अगणित अघ नाशै ।
विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशे ॥ २८ ॥
जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना ।
धर्मं मूल गंगाजल पाना ॥
तब गुन गुणन करत दुख भाजत ।
गृह गृह सम्पति सुमति विराजत ॥
गंगहि नेम सहित नित ध्यावत ।
दुर्जनहूं सज्जन पद पावत ॥
उद्दिहिन विद्या बल पावै ।
रोगी रोग मुक्त हवे जावै ॥ ३२ ॥
गंगा गंगा जो नर कहहीं ।
भूखा नंगा कभुहुह न रहहि ॥
निकसत ही मुख गंगा माई ।
श्रवण दाबी यम चलहिं पराई ॥
महं अघिन अधमन कहं तारे ।
भए नरका के बंद किवारें ॥
जो नर जपी गंग शत नामा ।
सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा ॥ ३६ ॥
सब सुख भोग परम पद पावहीं ।
आवागमन रहित ह्वै जावहीं ॥
धनि मइया सुरसरि सुख दैनि ।
धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी ॥
ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा ।
सुन्दरदास गंगा कर दासा ॥
जो यह पढ़े गंगा चालीसा ।
मिली भक्ति अविरल वागीसा ॥ ४० ॥
॥ दोहा ॥
नित नए सुख सम्पति लहैं, धरें गंगा का ध्यान ।
अंत समाई सुर पुर बसल, सदर बैठी विमान ॥
संवत भुत नभ्दिशी, राम जन्म दिन चैत्र ।
पूरण चालीसा किया, हरी भक्तन हित नेत्र ॥
॥ श्री गंगा मैया आरती ॥
नमामि गंगे ! तव पाद पंकजम्,
सुरासुरैः वंदित दिव्य रूपम् ।
भक्तिम् मुक्तिं च ददासि नित्यं,
भावानुसारेण सदा नराणाम् ॥
हर हर गंगे, जय माँ गंगे,
हर हर गंगे, जय माँ गंगे ॥
ॐ जय गंगे माता,
श्री जय गंगे माता ।
जो नर तुमको ध्याता,
मनवांछित फल पाता ॥
चंद्र सी जोत तुम्हारी,
जल निर्मल आता ।
शरण पडें जो तेरी,
सो नर तर जाता ॥
॥ ॐ जय गंगे माता..॥
पुत्र सगर के तारे,
सब जग को ज्ञाता ।
कृपा दृष्टि तुम्हारी,
त्रिभुवन सुख दाता ॥
॥ ॐ जय गंगे माता..॥
एक ही बार जो तेरी,
शारणागति आता ।
यम की त्रास मिटा कर,
परमगति पाता ॥
॥ ॐ जय गंगे माता..॥
आरती मात तुम्हारी,
जो जन नित्य गाता ।
दास वही सहज में,
मुक्त्ति को पाता ॥
॥ ॐ जय गंगे माता..॥
ॐ जय गंगे माता,
श्री जय गंगे माता ।
जो नर तुमको ध्याता,
मनवांछित फल पाता ॥
ॐ जय गंगे माता,
श्री जय गंगे माता ।
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