श्रद्धा हत्याकांड के आरोपी आफताब का आज नार्को टेस्ट हो सकता है। इस टेस्ट में कई तरह की जानकारी सामने आ सकती है। बता दें कि दिल्ली की साकेत कोर्ट ने आफताब का नार्को टेस्ट कराने का निर्देश दिया था।हाल ही में सामने आए श्रद्धा वाकर के जघन्य हत्याकांड में एक बार फिर से नार्को टेस्ट की चर्चा हो रही है। इस हत्या को लेकर देशभर में बवाल है, इस घटना के बाद लिव इन के साथ ही लव जिहाद जैसे मुद्दों पर न्यूज और सोशल मीडिया में जमकर चर्चा हो रही है।
बता दें कि मुंबई की श्रद्धा वाकर आफताब अमीन पूनावाला के साथ लिव इन में रहती थी। इसी दौरान उसकी हत्या कर करीब 35 टुकड़े कर दिए थे। पुलिस आफताब के खिलाफ सबूत जुटाने में जुटी है। इसी बीच कोर्ट ने आफताब का नार्को टेस्ट कराने की भी मंजूरी दे दी है।ऐसे में जानना जरूरी है कि आखिर नार्को टेस्ट क्या होता है और यह कैसे किया जाता है। नियमों के मुताबिक नार्को टेस्ट (Narco Test) कराने के लिए आरोपी या व्यक्ति की सहमति भी जरूरी होती है।
क्या होता है नार्को टेस्ट (Narco Test)?
नार्को टेस्ट (Narco Test) को ट्रुथ सीरम के रूप में भी जाना जाता है। इसका इस्तेमाल पहले महत्वपूर्ण मामलों को सुलझाने के लिए किया गया है। इस टेस्ट में एक दवा (जैसे सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल) को शरीर की शिराओं में पहुंचाया जाता है। एनेस्थीसिया के जरिये इसे लेने वाले व्यक्ति को विभिन्न चरणों से गुजरना होता है। इस दौरान उसकी चैतन्यता कम होती जाती है। एक तरह से जैसे ही यह दवा शरीर में जाती है वह व्यक्ति सम्मोहन की अवस्था में चला जाता है। इसका असर यह होता है कि वो कम संकोची हो जाता है और खुलकर बातचीत करता है। ऐसे में उससे कई तरह की जानकारी प्रकट करने की संभावना बढ जाती है। माना जाता है कि आमतौर पर इस तरह खुलकर सचेत अवस्था में व्यक्ति बात नहीं करता है और बहुत सी बातें छुपा लेता है।
Narco Test के लिए क्यों जरूरी है सहमति?
बता दें कि नियमों के मुताबिक, नार्को टेस्ट के लिए उस व्यक्ति की सहमति जरूरी होती है, जिसके साथ यह टेस्ट किया जाना है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि नार्को एनालिसिस, ब्रेन मैपिंग और पालीग्राफ टेस्ट किसी भी व्यक्ति की सहमति के बिना नहीं किए जा सकते। शीर्ष अदालत ने इस तरह के परीक्षणों की वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं के जवाब में कहा था कि यह अवैध और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है। हालांकि, नार्को टेस्ट के दौरान दिए गए बयान अदालत में प्राथमिक सबूतों के तौर पर स्वीकार नहीं किए जाते हैं।
कहां से आया है नार्को शब्द?
दरअसल, इस शब्द के इतिहास में जाएं तो नार्को एनालसिस शब्द ग्रीक शब्द नार्को से लिया गया है। इसका उपयोग एक क्लीनिकल और मनोचिकित्सा तकनीक की व्याख्या करने के लिए किया जाता है। नार्को शब्द का अर्थ होता है एनेस्थीसिया या टॉरपोर।
- नार्को परीक्षण में एक दवा, सोडियम पेंटोथल का इंजेक्शन शामिल होता है, जो एक कृत्रिम निद्रावस्था या बेहोश करने वाली स्थिति को प्रेरित करता है जिसमें विषय की कल्पना बेअसर हो जाती है, और उनसे सच्ची जानकारी प्रकट करने की अपेक्षा की जाती है।
- इस संदर्भ में “सत्य सीरम” के रूप में संदर्भित दवा, सर्जरी के दौरान संज्ञाहरण के रूप में बड़ी खुराक में इस्तेमाल की गई थी, और कहा जाता है कि इसका उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान खुफिया संचालन के लिए किया गया था।
यह पॉलीग्राफ टेस्ट से कैसे अलग है? - एक पॉलीग्राफ टेस्ट इस धारणा पर आधारित होता है कि जब कोई व्यक्ति झूठ बोल रहा होता है तो शारीरिक प्रतिक्रियाएं अलग-अलग होती हैं जो अन्यथा होती हैं।
- कार्डियो-कफ या संवेदनशील इलेक्ट्रोड जैसे उपकरण व्यक्ति से जुड़े होते हैं, और चर जैसे रक्तचाप, नाड़ी, श्वसन, पसीने की ग्रंथि गतिविधि में परिवर्तन, रक्त प्रवाह, आदि को मापा जाता है, क्योंकि उनसे प्रश्न पूछे जाते हैं।
यह निष्कर्ष निकालने के लिए कि क्या व्यक्ति सच बोल रहा है, धोखा दे रहा है, या अनिश्चित है, प्रत्येक प्रतिक्रिया को एक संख्यात्मक मान दिया जाता है।
क्या भारतीय जांचकर्ताओं को इन परीक्षणों के माध्यम से संदिग्धों को रखने की अनुमति है? - सेल्वी और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य (2010) में, एक सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि “अभियुक्तों की सहमति के आधार को छोड़कर” कोई झूठ डिटेक्टर परीक्षण नहीं किया जाना चाहिए।
- इसने यह भी कहा कि 2000 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा प्रकाशित ‘अभियुक्त पर पॉलीग्राफ टेस्ट के प्रशासन के लिए दिशानिर्देश’ का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।
अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत मानवाधिकारों, निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार और आत्म-दोष के खिलाफ अधिकार पर अंतरराष्ट्रीय मानदंडों को ध्यान में रखा।
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